सावन के रिमझिम फुहार
बरसे जईसे मोतियों की हार
गांव के गोरी करत हे सिंगार
झुम झुम नाचन लागे बार बार
बड़ गरजत घुमड़त हवय बादर
भुईयां ओढ़े हे पानी के चादर
झमा झम बरसत हवय पानी
पंख फैलाये नाचन लागे मंजूर रानी
एती ओती चारों मुड़ा जम्मो ओर
बिकट करिया घटा छाये घनघोर
चिखला माते गांव गली चहु ओर
मोर चंदा नाचन लागे घर द्वार खोर