कविता: फूट

वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट बजार में जात्ते साठ आदमी मन लेथे सबला लूट | मन भर खाले तेंहा फूट खा के झन बोलबे झूठ फोकट में खाना... thumbnail 1 summary
वाह रे हमर बखरी के फूट
फरे हाबे चारों खूंट
बजार में जात्ते साठ
आदमी मन लेथे सबला लूट |
मन भर खाले तेंहा फूट
खा के झन बोलबे झूठ
फोकट में खाना हे त आजा
उतार के अपन दूनों बूट
वाह रे हमर बखरी के फूट
फरे हाबे चारों खूंट |
लट लट ले फरे हे एसो फूट
राखत रहिथे समारु ह
पी के दू घूंट
चोरी करथे तेला तो
देथे गारी छूट
मिरचा अऊ लिमऊ ल बांधे हों
मारे झन कोनो मूठ
जतका खाना हे
खाले तेंहा फूट
अऊ नई खाना हे
त चल ते इंहा ले फूट
वाह रे हमर बखरी के फूट
फरे हाबे चारों खूंट |