कविता-समाज ल आघू बढ़ाबोन

जुर मिल के काम करके हम नवा रसता बनाबोन | नियाव धरम ल मानके संगी समाज ल आघू बढ़ाबोन || नइ होवन देन हमन अपन रिति रिवाज के अपमान समय के साथ चलके... thumbnail 1 summary
जुर मिल के काम करके
हम नवा रसता बनाबोन |
नियाव धरम ल मानके संगी
समाज ल आघू बढ़ाबोन ||
नइ होवन देन हमन
अपन रिति रिवाज के अपमान
समय के साथ चलके संगी
बढ़ाबोन एकर मान |
सबके साथ नियाव करबो
अन्याय होवन नइ देवन
राजा रंक सब एक समान हे
कोनो के जान नइ लेवन |
सुख दुख जम्मो में सबके
काम हमन आबोन
जेकर घर काम परही
ओकर घर हमन जाबोन |
इही समाज में रहना हमला
इही समाज में जीना हे
सब ल अपन समझ के संगी
पानी पसीया पीना हे |
समाज ल आघू बढ़ाये खातिर
कुरिति ल मिटाना हे
भाई बंधु के परेम जगा के
नवा सुरिति लाना हे |