हमर छत्तीसगढ़ म किसम किसम के खाई खजाना भरे हे। तस्मई, बरा, भजिया, चिवरा, उखरा, सोंहारी, खुरमी, ठेठरी, अउ नई जानन कतका कन बियंजन हावे। फेर किसान मन अउ छत्तीसगढ़ के मितान मन ल बोरे बासी ह जादा मिठाथे। मोर छत्तीसगढ़ के संगवारीमन ल एक कति काजू,बदाम, पिसता, अखरोट, इटली, दोसा दे देवव अउ दूसर कति एक बटकी म बोरे बासी दे देवव ओमन बोरे बासी ल खाही। काबर, बोरे बासी म बिटामिन के खजाना हे। जेहर बोरे बासी खाथे ओला बिटामिन के टानिक बूढ़ात ले लेहे बर नई परय। जतका बिमारी ल ठीक कर देथे तेकरे सेती मोर किसान के पहिली पसंद बोरे बासी हर ए।
बर बिहाव म एकठन सिस्टम आगय हे जेला कइथे बफर सिस्टम। मोला लागथे ए हर बफैलो सिस्टम ए। जेला देखबे तेहा खड़े- खड़े गरवा भइसा कस रकस रकस खात रइथे। खाथे कम देखाथे जादा अऊ ओतको म पूछथे दोला नइ लेहे काय। एक तो खुद ल मिठात नइ हे अऊ आने कोनो ला पूछथे तै नइ पाय का ग। चांटी कस लाइन म लगे लगे जब खाय बर नई मिलत रहय त बड़े-बड़े मनखे घलाव मन ढकेले ल सुरू कर देथे। ढकेलत- ढकेलत जमो भात साग गिर जाथे फेर कहिथे साॅरी- साॅरी। ए सबद ल सुनके मोला अइसे लागथे माफी नई मांगत हे जम्मो ल खंाहू कहत हे। सिरतोन म मेहर बतावत हांै ए सिस्टम ले बढ़िया तो बोरे बासी सिस्टम हे। जम्मो बाराती ल लाइन के बार बइठार के बटकी म दही नून डारके बोरे बासी देवव। जमो पोठ खाही अऊ फेर दुलहा के दाइज डोर ल टेकटर म जोरे घलो लागही अऊ नई त फेर बफर सिस्टम म दारू पीके सीसी ल फोरे लागही। हमीमन ल समझना हे कि हमर संस्किरति ल कति जाय देबो। आज के टूरा हर काय जानही बोरे बासी ल। मेहर कविता के माधियम ले बतावत हौ।
‘‘रथिया म भात ल पानी म बोरा।
हरियर धनिया मिरचा ल टोरा।
बटकी म आमा के डाला अथान।
नून अऊ दही घलाव रही मितान।
गोंदली ल बासी म बुड़ाय देवा।
अमटहा भाजी ल जुड़ाय देवा।
खतम हो जाही तुहर पूरा ऊंघासी
बिटामिन के भरमार खालव बोरेबासी।’’
हरियर धनिया मिरचा ल टोरा।
बटकी म आमा के डाला अथान।
नून अऊ दही घलाव रही मितान।
गोंदली ल बासी म बुड़ाय देवा।
अमटहा भाजी ल जुड़ाय देवा।
खतम हो जाही तुहर पूरा ऊंघासी
बिटामिन के भरमार खालव बोरेबासी।’’
सियान मन कइथे मोला देखव मंय बासी खवइया औं। एक सौ एक होगे तभो ले नई मरत हव। एक एक ठन पकती पकती ल घलाव गिन डारहू। दूरिहा के चिराई ल देख डारहू। आजकाल के टूरा चार पांच बछर के होथे तिहा चसमा लग जाथे अऊ गांव के डोकरामन ल देखा भात म कीरा रेंग ही तभो जान डारही। छोट छोट आखर ल घलाव पढ़ डारही। ए सबहा बोरे बासी के ताकत ए।